Saturday 16 February 2013

Photo: Stampede at Kumbh Mela, two killed...................

Two persons were killed in a stampede at the Maha Kumbh Mela on Sunday as three crore pilgrims converged for a holy dip at Sangam on the auspicious occasion of ‘Mauni Amavasya’.

The stampede broke out in Sector 12 of the kumbh mela area killing a woman from Varanasi and a middle-aged man, who had come for a holy dip from West Bengal.

                          kumbh mele me asnan karte sradhalu

                             खतरनाक होगा 22वी सदी का सुपर मैन 


प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो, यशपाल
जाने-माने भारतीय वैज्ञानिक और चिंतक प्रोफेसर यशपाल से आने वाली सदी में संभावित बदलावों के बारे में बात करना एक अलग ही अनुभव है। लंबे-चौड़े युगांतर बदलावों पर चर्चा करने की बजाय वह इस तरह की उत्सुकताओं पर सवाल ही करते हैं और आगे आने वाले बहुत से बदलावों की ओर संकेत देते हैं, जो हमारे आगे बढ़ने की दिशा में अवरोध पैदा कर सकते हैं —
अगर विज्ञान की नजर से देखा जाए तो 22वीं सदी का जीवन कैसा होगा?
इस बारे में बात करना ठीक वैसा ही है, जैसे हवा में किसी काल्पनिक चीज को पकड़ने का प्रयास करना। निश्चित तौर पर कई स्तर पर बदलाव होंगे, लेकिन ये कैसे होंगे, किस तरह ची़जों बदलेंगी यह कहना थोड़ा  मुश्किल है। मैं यही कहूंगा कि हम समाज और विज्ञान को अलग-अलग करके देखते हैं, जबकि ये सही नहीं है। जब भी विज्ञान या उसकी नई खोजों की बात की जाए तो उसमें समाज को हमेशा समकक्ष रखकर देखा जाना चाहिए, बल्कि समाज का जो स्पेस है, उसमें विज्ञान को फिट किया जाना चाहिए। अन्यथा वैज्ञानिक चिंतन और उसमें हो रहे काम अधूरे ही रहेंगे। निश्चित तौर पर 22 वीं सदी में विज्ञान से समाज की तसवीर में काफी परिवर्तन होगा, लेकिन ये जरूर कहूंगा कि मानव शायद ही बदले, उसकी शायद ही बदलें। झगड़े अब भी हैं और तब भी रहेंगे। 
जेनेटिक इंजीनियरिंग पर बहुत काम हो रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले दशकों में मानव प्रजाति की असली तसवीर जीन्स और डीएनए पर होने वाली नई शोधों से बदलेगी। क्या आप इससे सहमत हैं?
काम तो बहुत हो रहा है, लेकिन दुनियाभर के हमारे वैज्ञानिक अभी केवल कुछ हजार जीन्स या डीएनए को ही पहचान पाए हैं। उनका कहना है कि असल में यह कुछ हजार जीन्स ही काम के हैं, जिनसे मानव प्रजाति को लेकर बेहतर काम किया जा सकता है। शायद वो इन्हीं पर काम कर भी रहे हैं। जीन्स और डीएनए तो लाखों की संया में हैं, लेकिन आमतौर पर उन्हें जंक मान लिया गया है। मेरा मानना है कि वो जंक नहीं है, बल्कि असली रहस्य तो उसी में छिपा है। अगर उन पर हमारे वैज्ञानिक पहुंच पाएं और उन्हें समझ पाएं तो सही मायने में कमाल हो सकता है, लेकिन चूंकि जिन लाखों डीएनए को हम जंक कहते हैं, वे इतनी दूर पड़े हैं कि शायद उन तक पहुंचना ही फिलहाल वैज्ञानिकों के लिए संभव नहीं, इसलिए उन्हें लगता है कि इनका कोई असर या भूमिका मानवीय जीवन में नहीं है, लिहाजा वे इसे जंक मानते हैं। बल्कि मैं तो कहूंगा इनका भी असर होता है, इन पर जरूर दृष्टि डाली जानी चाहिए। संयोग से कुछ वैज्ञानिकों का दृष्टिकोण भी जंक डीएनए को लेकर बदल रहा है। तो यह तय मानिए कि जिस दिन इन डीएनए पर निगाह जाएगी, बातें पता चलेंगी कि मानवीय जीवन को वाकई बदला जा सकेगा। 
क्या डीएनए पर काम करके बीमारियों को कम किया जा सकेगा?
देखिए ऐसा कुछ जरूर होगा। बीमारियों पर कुछ हद तक काबू पा लिया जाएगा, लेकिन फिर नई तरह की दिक्कतें शुरू हो जाएंगी। असली बात यही है कि जो समस्याएं आने वाले समय के साथ मानवीय जीवन पर असर डालने वाली हैं, उनके बारे में हम कितना सोच रहे हैं और उनसे किस तरह निपटेंगे।
ये भी माना जाता है कि जीन्स का रहस्य खोजने के बाद असाधारण तरह की जीन्स की मदद से सुपर ह्यूमन जैसी अवधारणा को भी हकीकत का जामा पहनाया जा सकता है?
यह बहुत खतरनाक होगा। कौन यह तय करेगा कि इसको बनाया जाना चाहिए। कभी हिटलर ने भी यह आइडिया दिया था। तब कुछ वैज्ञानिकों ने इस दिशा में काम करना शुरू किया था, लेकिन बाद में 
इसे खत्म कर दिया। ऐसा नहीं होना चाहिए, यह सचमुच खतरनाक होगा। अगर हमने जीन्स के जरिए सुपर ह्यूमन बना लिया तो उस पर कंट्रोल कौन करेगा। मुझको लगता है कि इस ओर कभी कदम नहीं बढ़ाया जाएगा।
वर्ष 2100 या यों कहें 2२वीं सदी में मानव और रोबोट का गजब का तालमेल देखा जाने लगेगा, बल्कि मानव खुद काफी हद तक रोबोट के साथ सिंक्रोनाइज हो जाएगा?
एेसा कुछ हद तक हो सकता है। जिस तरह से काम हो रहा है, उसमें एेसा होना अस्वाभाविक नहीं होगा। टोटल इवोल्यूशन होगा। अगर मानव का इतिहास देखें तो बहुतसी एेसी बातें हुईं या हो रही हैं, जिसके बारे में सोचा नहीं गया था। दरअसल, साइंस की शुरुआत उसी दिन हो गई थी, जब मानव ने सोचना शुरू किया था। ये प्रक्रिया पिछले 2000 सालों से लगातार आगे बढ़ रही है। 20वीं सदी की शुरुआत से ये प्रक्रिया ज्यादा तेज हुई। निश्चित तौर पर आगे बहुत कुछ बदलेगा। नई मशीनें आएंगी। यह तय है कि टोटल इवोल्यूशन होगा, लेकिन क्या निकलेगा यह पता नहीं।
कहा जाता है कि कभी-कभी एक आविष्कार या उसकी परिकल्पना पूरी सदी को बदल देती है। ऐसा कौन-सा क्षेत्र है, जिसमें आने वाले दशकों में एेसा कुछ हो सकता है?
कहना कठिन है। बहुत चीजें आती हैं, जो बदलाव का वाहक बनती हैं। सूचना का युग तो यह है, लेकिन इसमें भी जटिलता कम नहीं। इंफॉर्मेशन में विस्फोट की स्थिति है। जहां देखो वहां इंफॉर्मेशन बिखरी पड़ी है। इंटरनेट पर। गूगल में जाइए, सब कुछ निकल आएगा। किसी स्कूल में टीचर बच्चांे को प्रोजेक्ट बनाने को देती है। वो गूगल में आकर सर्च करता है। कॉपी करता है और उसका प्रोजेक्ट तैयार। बेशक यह तैयार तो हो गया, लेकिन आइडिया के स्तर पर तो यह जीरो है। ये असल में ज्ञान नहीं है। आजकल यह सब बातें आपकी विचार प्रक्रिया में अवरोध डाल रही हैं। नया कुछ नहीं है। यह मेरा अपना विचार है, लेकिन मुझको लगता है कि आजकल ब्लॉक्स बढ़ रहे हैं, दिमागी प्रक्रिया में भी ये ब्लॉक्स दिखते हैं। आप कह सकते हैं कि सोचने की प्रक्रिया को इंफॉर्मेशन के विस्फोट ने रिप्लेस कर दिया है। 
मौसम बदल रहा है, ग्लोबल वार्मिग बढ़ रही है। पानी लगातार कम हो रहा है। प्राकृतिक स्रोतों का लगातार दोहन हो रहा है। क्या ऐसे में अगली सदी तक धरती मानव के लायक रहेगी?
रहेगी तो सही। मौसम बदल रहा है, लेकिन बदलाव के लिए टाइम स्केल का ध्यान रखना पड़ता है। हजारों सालों में चीजें बदलती हैं। मानव इतिहास में ही बहुत-सी चीजें बार-बार हजारों सालों में बदली हैं। नदियां, बाढ़, ग्लेशियर, नए पहाड़, हिमालय यह सब हजारों सालों में बार-बार बदले हैं और नए तरीके से इनका प्रादुर्भाव हुआ है। चूंकि मानव का इतिहास कुछ हजार सालों का है और जो बातें इतिहास की मेमोरी में हैं, वह महज दो से तीन हजार सालों की हैं, लिहाजा हमें बहुत-सी बातें मालूम ही नहीं, जो धरती पर बारबार होती रही हैं। नजदीकी समय में कुछ गंभीर बदलाव होंगे, यह कहना मुश्किल है, लेकिन यह आप तय मानिए कि इस धरती पर कई बार ग्लोबल वार्मिग हो चुकी है। कई बार ग्लेशियर बने और लुप्त हुए हैं। पानी की स्थिति बनी बिगड़ी है। 
विज्ञान से हटकर अगर समाज की ओर जाएं तो अगली सदी कैसी होगी?
यह तो मैं नहीं जानता। हां, यह कह सकता हूं कि भेदभाव कम होंगे। सामाजिक तौर पर हमने बहुत ढेर सारे बदलाव देखे हैं। यह जारी रहेंगे। जागरूकता लगातार बढ़ रही है और इसका असर दिख रहा है और आने वाली सदी में तो आप समझ ही सकते हैं कि इसका स्तर ऊपर तक पहुंच चुका होगा। 
नई सदी में ढेरों एेसे सवाल भी होंगे, जिनके न तो विज्ञान को मिल पाएंगे और न ही मानव को। वे सवाल क्या हो सकते हैं?
मुझे कई बार यूनिवर्स के बारे में सोचकर हैरत होती है। कई सवाल जेहन में आते हैं। क्या हम इस ब्रह्माण्ड  में अकेले हैं, जो तारे देखते हैं। अगर यह ब्रह्माण्ड  विकराल है तो हमारा संपर्क अब तक सौरमंडल या इससे परे दूसरे ग्रह के लोगों से क्यों नहीं हुआ। सही मायनों में यह यूनिवर्स बहुत फैंटास्टिक है। न जाने कितने रहस्य छिपे हैं इसके भीतर। वैसे सच कहें तो अभी हमने नेचर के दिमाग को भी कहां पहचाना है। नई सदी में यह सवाल बरकरार रहेगा कि हम यहां क्यों हैं? विधाता ने हमें क्यों बनाया?  साभार दैनिक  पत्र / पत्रिका